किसी की शक्ति यदि छीन जाए तो वह क्या करे ? वह बस मतवातर डरे ! ऐसा ही कुछ पड़ोसी देश के साथ हुआ है। वह बाहर भीतर तक हिल गया है।
खोखला करता है बहुत ज़्यादा ढकोसला। वह भी क्या करे ? भीतर बचा नहीं हौंसला। अशक्त किस पर हो आसक्त ? वह आतंक को दे रहा है बढ़ावा, इस आस उम्मीद के साथ ज़ोर आजमाइश करने से बढ़ जाए उसको मिलने वाला चढ़ावा वह एक लुटेरा देश है। धर्म के नाम पर वह अलग हुआ, कुछ खास तरक्की नहीं कर सका। यही उसके अंदर का क्लेश है। अशक्त देश किस पर हो आसक्त ? क्या धर्म पर या फिर ठीक उल्टा आतंकी मंसूबों पर ? वह कोई फ़ैसला नहीं कर पा रहा। इसी वज़ह से खोखला देश हिम्मत और हौंसला छोड़ आतंक और विघटनकारी ताकतों को दे रहा मतवातर बढ़ावा। वह भीतर ही भीतर विभक्त होने की राह पर है। आज वह हार की कगार पर है। ०५/०५/२०२५.