युद्ध अभी विधिवत शुरू हुआ नहीं कि युद्ध विराम की , की जा रही है बात कौन है वह देश ? जो नहीं चाहता कि युद्ध हो।
अभी जन आक्रोश उफान पर है , यदि किसी दबाव वश हमला नहीं हुआ , तब अवश्य जन विश्वास ख़तरे में है। इसे कैसे खंडित होने से बचाया जाए ? इस बाबत भी सोचा जाए। मन के भीतर उमड़ते-घुमड़ते तूफ़ान को न रोका जाए । आओ मंज़िल की ओर बढ़ा जाए। युद्ध भूमि में डटा जाए बेशक मौत दे दे मात ! यह भी होगी वक्त के हाथों से सब के लिए अद्भुत सौगात!
अब युद्ध अपरिहार्य है ! युद्धवीर ! क्या तुम्हें यह स्वीकार्य है ? कुछ कर गुजरने से पहले युद्ध विराम हरगिज़ नहीं चाहिए। इस बाबत नेतृत्व को भी समझना चाहिए। शांति स्थापना के लिए युद्ध की नियति कोई नई नहीं। इस सत्य को सब समझें तो सही। ०२/०५/२०२५.