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May 1
युद्ध से
पहले
देर तक  
खामोशी बनी रहे।
यहाँ तक कि
हवा भी न बहे।
बस हर पल
यह लगे कि
कुछ निर्णायक होने वाला है।
अन्याय का साम्राज्य
शीघ्र ध्वस्त होने वाला है।
उसे मुक्ति से पहले
चिंतन मनन करने दो।
शायद युद्ध रुक जाए।
देश दुनिया और समाज संभल पाएं।
वरना महाविनाश सुनिश्चित है।
अनिश्चितता के बादल छाएंगे
और ये दिशा भ्रम की
प्रतीति कराए
बिना नहीं रहेंगे।
ठीक
कुछ इसी क्षण
खामोशी टूटेगी
और युद्ध का आगाज़ होगा ,
भीतर सहम भर चुका होगा ,
आदमी बेरहम बन रहा होगा धीरे धीरे।
वह युद्ध का शंखनाद
सुनने को व्यग्र हो रहा होगा।
अस्त व्यस्तता और अराजकता के माहौल में
सन्नाटा
सब के भीतर  पसर कर
वह भी युद्ध से पहले
जी भर कर सो लेना चाहता है।
फिर पता नहीं !
कब सुकून  मिले ?
मिलेगा भी कि नहीं ?
भयंकर पीड़ा
और विनाश
युद्ध से पूर्व ही
सर्वनाश होने की
प्रतीति कराने को हैं व्यग्र।
हर कोई उग्र दिख पड़ता है ।
पता नहीं यह विनाशकारी युद्ध कब रुकेगा ?
युद्ध से पूर्व की ख़ामोशी
सभी से कहना चाहती है
परन्तु सब युद्ध के उन्माद में डूबे हैं।
कौन उसकी सुने ?
वैसे भी ख़ामोशी से संवाद रचा पाना
कतई आसान नहीं।
युद्ध की आहट
सन्न करने वाला सन्नाटा
या कोई बुद्ध ही समझ पाता है।
किसी हद तक संयम रख पाता है।
०१/०५/२०२५.
Written by
Joginder Singh
71
 
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