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Apr 30
दीवार के किसी कोने पे टंगी...
जिस तस्वीर को देख... निहारता था,
उस तस्वीर पे.. न जाने कैसा गर्द है,
तुझे देख भी ...न देख पाने सा.. जैसा कुछ दर्द है
अब भी आँखों में है, ख़्वाब तेरे सवालों के,
और जवाबों में लिपटा... हर लफ्ज़ पिरौन है।
अपने इस शहर में... कोई अपना भी कौन है।
कानो में फुसफुसाती वो... नग़मा भी मौन है।
देख, तेरा इंतेज़ार यूं.. किया तो है मैने,
पर मेरा सब्र भी जैसे... अब सबरी हो गया ।
! धुंध की इस गर्द में... तेरा चेहरा कही तो खो गया।

क्या, वो तस्वीर, अब सिर्फ़... एक निशानी है,
वक़्त की उस धुंध में, खोई सी कहानी है।
जिसको देख कभी दिल, मुस्कुराता था,
आज वही अक्स... एक बेनाम सी परेशानी है।
कभी जो आंखों में जिंदा था वो नज़ारा,
जैसे एकही राह में भटकता बंजारा । ........
......

यह एहसास कुछ ऐसा है,...वो वैसा... न जाने कैसा है
तस्वीर पर जमी धूल सी है.. ये शिकायत,
जो कभी साफ़ करो तो...धुंधला सा कुछ अक्स दिखे।
SURYAMVIVEK
Written by
SURYAMVIVEK  17/M/Ghaghra,Gumla JH INDIA
(17/M/Ghaghra,Gumla JH INDIA)   
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