कर्म चक्र समय से पहले कभी भी आगे बढ़ने की प्रेरणा नहीं देता। आदमी कितना ही ज़ोर लगा लें , मन को समझा लें। मन है कि यह साधे नहीं सधता। यह अड़ियल बना रहता है। अकारण तना रहता है , खूब नाच नचाता है।
समय आने पर यह भटकना छोड़ देता है , अटकना और मचलना रोक कर यह स्वयं को अभिव्यक्त करने की पुरजोर कोशिश करता है , अपने भीतर कशिश भरता है। ठीक इसी क्षण आदमी के प्रारब्ध का शुभारंभ होता है। हर रुका हुआ काम सम्पन्न होने लगता है , जिससे तन मन में प्रसन्नता भरती जाती है। यह आगे बढ़ने के अवसरों को ढंग से बटोर पाती है। यह सब कुछ न केवल आदमी को सतत् कामयाबी की अनुभूति कराता है , बल्कि सुख समृद्धि और सम्पन्नता के जीवन में आगमन से व्यक्ति जीवन दिशा को भी बदल जाता है। यही प्रारब्ध का शुभारंभ है , जहां सदैव रहते आए उत्साह ,जोश और उमंग की तरंगें हैं। इन्हीं के बीच सुन पड़ती जीवन की अंतर्ध्वनियां हैं। ३०/०४/२०२५.