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Apr 30
कर्म चक्र
समय से पहले
कभी भी
आगे बढ़ने की
प्रेरणा नहीं देता।
आदमी
कितना ही
ज़ोर लगा लें ,
मन को समझा लें।
मन है कि यह
साधे नहीं सधता।
यह अड़ियल
बना रहता है।
अकारण
तना रहता है ,
खूब नाच नचाता है।

समय आने पर
यह भटकना
छोड़ देता है ,
अटकना और मचलना
रोक कर
यह स्वयं को
अभिव्यक्त करने की
पुरजोर कोशिश करता है ,
अपने भीतर कशिश भरता है।
ठीक इसी क्षण
आदमी के
प्रारब्ध का शुभारंभ होता है।
हर रुका हुआ काम
सम्पन्न होने लगता है ,
जिससे तन मन में
प्रसन्नता भरती जाती है।
यह आगे बढ़ने के
अवसरों को ढंग से
बटोर पाती है।
यह सब कुछ न केवल
आदमी को सतत्
कामयाबी की अनुभूति कराता है ,
बल्कि सुख समृद्धि और सम्पन्नता के
जीवन में आगमन से
व्यक्ति जीवन दिशा  को
भी बदल जाता है।
यही प्रारब्ध का शुभारंभ है ,
जहां सदैव रहते आए
उत्साह ,जोश और उमंग  की तरंगें हैं।
इन्हीं के बीच सुन पड़ती
जीवन की अंतर्ध्वनियां हैं।
३०/०४/२०२५.
Written by
Joginder Singh
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