ज़िन्दगी के बहाव में आदमी कुछ भी न कर पाए वह बस बहता चला जाए आदमी ऐसे में क्या करे ? क्या वह हाथ पांव मारना छोड़ दे ? अपनी डोर परमात्मा की रज़ा पर छोड़ दे ! क्यों न वह संघर्ष करे ! विपरीत हालातों के अनुकूल होने तक वह धैर्य बनाए रखे। दुर्दिन सदैव रहते नहीं। बेशक ज़िन्दगी में कुछ भी न हो रहा हो सही। आदमी अपने आप को सकारात्मक बनाए रखे तो सही। जीवन यात्रा में हरेक जीव अपने गंतव्य तक पहुंचता है। यह स्वयं का दृढ़ विश्वास ही है जो जीवन के वृक्ष को सतत सींचता है। कुछ भी सही न होने के बावजूद आदमी जीवन धारा के साथ बहता चले, वह निराशा और हताशा से बचता हुआ खुद से संवाद रचाता हुआ निरन्तर आगे बढ़ता रहे , ताकि गतिशीलता बनी रहे , जीवन में जड़ता बाधा न बन सके। जब कुछ भी सही न हो ! तब भी आदमी हिम्मत और हौंसला बनाए रखे , वह स्वयं को निरन्तर चलायमान रखे। चलते चलते दुर्गम रास्ते भी आसान लगने लग जाते हैं। गतिशील कदम मंजिल पर पहुँच ही जाते हैं। २८/०४/२०२५.