आतंकी भी इंसान होते हैं बेशक वे भटके हुए हैं उनसे हमदर्दी होनी चाहिए क्यों उन्हें बेवजह कोसते हो ? उनके आतंकी बनने के पीछे की वज़ह जानना भी ज़रूरी है। कोई मज़बूरी रही होगी। उस विवशता को दूर करना मुनासिब रहेगा ताकि किसी को अपने देश और कौम के खिलाफ़ हथियार उठाने न पड़ें। बल्कि वे देश दुनिया और समाज की खिदमत में हो सकें खड़े। बेशक उन से सभी को हमदर्दी होनी चाहिए। इसे ज़ाहिर करने से पहले अपनी अकल के घोड़े तनिक दौड़ा लेने चाहिए। इसने कितने ही लोगों के वजूद को नेस्तनाबूद किया होगा। उनके जाने से उनके परिवार पर मुसीबतों का पहाड़ टूटा होगा। कितनी बेवाएं, कितने यतीम बच्चे , कितनों के बूढ़े माँ बाप जिगर के टुकड़ों के यकायक मर जाने से रोए होंगे। इस बाबत सोचा है कभी ? वे चाहते तो खुद को रख सकते थे सही। अब ये कैद में हैं। आप चाहते हैं इन्हें फांसी न हो । कानून थोड़ी नरमी दिखाए। मेरे भाई ! ऐसा क्यों ? क्या आपका किरदार और जमीर गया सो ? कृपया पहले इसे जगाएं । फिर हमदर्दी भरा कोई बहाना बनाएं। इस जन्नत से भी हसीन कायनात को इंसानी खुदगर्ज़ी , नफ़रत, मारधाड़, चोरी सीनाजोरी की लत से दोजख न बनाएं। बस आप खुद को सही बनाएं। यह दुनिया ख़ुदबखुद जन्नत सी नजर आएगी। खौफ के साए भी सिमटते दिख पड़ेंगे । बस आप ज़रा बेवजह हमदर्द दिखने से गुरेज़ करेंगे तो... तभी जिन्दगी पटरी पर आती लगेगी। डरे हुए ,फीके पड़े चेहरों पर फिर से प्यार और विश्वास की चमक दिख पड़ेगी। यह कायनात ख़ुदा से गुफ्तगू करती हुई लगेगी। हमदर्दी और दुआ भी किसी दवा की तरह शिफा करेगी। २६/०४/२०२५.