किसी से जाति पूछते समय मैं हो जाया करता था असहज, जब काम के दौरान किसी कॉलम को भरने के समय जाति से संबंधित कोड भरने का जिम्मा रहता था । मुझे लगता रहा है आज तक जाति व्यक्ति का व्यक्तिगत मामला है , इसे आम बोलचाल में न ही पूछा जाए। जाने अनजाने किसी की संवेदना को क्यों कुरेदा जाए ? आज जब विपक्ष द्वारा जातिगत जनगणना का मुद्दा रह रह कर उठाने का प्रयास किया जा रहा है। सत्ता पक्ष द्वारा इसे पूछने वाले की जाति को पूछा जा रहा है। तर्क है कि पहले खुद की जाति बताई जाए , इसके बाद ही कोई जाति से संबंधित बात की जाए।
देश की एकता में जाति व्यवस्था बाधक है। मगर इस से पिंड छुड़ाना फिलहाल असंभव है। यह उम्मीद भी है कि आने वाले समय में युवा पीढ़ी इस जाति के कोढ़ का इलाज़ ढूंढ ही लेगी । वह समानता और सद्भावना से मनुष्यता को चुनेगी। हमारी पीढ़ियां सर्वप्रथम सुख समृद्धि और संपन्नता को वरेंगी। इसके बाद ही बाकी कुछ को वरीयता मिलेगी। उम्मीद है कि वर्तमान के संदर्भ में जाति व्यवस्था स्वयं में समयानुरूप सुधार करेगी , तभी देश दुनिया और समाज में आदमजात की ज़िन्दगी सुरक्षित और उसके आगे बढ़ने की संभावना बनी रहेगी। अन्यथा अराजकता हावी होकर सर्वस्व को लील लेगी। फिर कैसे नहीं चहुं ओर विनाश लीला होगी ? यह ज़िन्दगी रुकी सी लगने लगेगी ! आगे बढ़ने की अंधी दौड़ कब कब नहीं पागलपन कराती रहेगी ? अतः आम हालात में जाति पूछने से किया जाना चाहिए संकोच , वरना झेलना पड़ सकता है विरोध। २६/०४/२०२५.