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वर्ल्ड अर्थ डे के दिन
आतंकियों ने
पहलगाम में
पर्यटकों को
मौत की नींद सुला दिया ,
एक बार फिर से
शान्ति की नींद सोए
प्रशासन और व्यवस्था को जगा दिया।
देश दुनिया क्या करे ?
क्या वे इसे विधि का विधान मान कर
चुपचाप ज़ुल्म ओ सितम को सहें ,
या फिर इसका प्रतिकार करें ?
देश दुनिया में आतंक
अर्से से कर रहा है
जन साधारण और खासमखास को तंग।
क्यों न जेहादियों को
शरिया कानून के तहत ही सज़ा दी जाए ?
उनके आकाओं को भी
जिंदा जीते जी बहत्तर हूरों के पास भेजा जाए !
उनको भोग विलास करते करते
लाइव टेलीकास्ट के माध्यम से
दुनिया को प्रतिशोध का रंग दिखाया जाए !!
या फिर पड़ोसियों को उनकी ही भाषा में
संदेश दिया जाए।
एक हत्या के बदले सौ की हत्या से
नृशंसता को प्रदर्शित किया जाए।
कल अचानक अप्रत्याशित ही
विश्व अर्थ डे को
अंततः अनर्थ डे  के रूप में मनाया गया।
इस निर्दोषों पर हुए हमले ने
राष्ट्र को झकझोर दिया।
बहुत से लोगों को भीतर तक तोड़ दिया।
क्या राष्ट्र कायरता का परिचय दे ?
पहले की तरह चुप कर जाए !
या फिर अहिंसा छोड़ कर
हिंसावादियों को
उनकी जानी पहचानी भाषा में
उत्तर देने का मन बनाए ?
अर्जुन सम  बनकर
दृढ़ संकल्प कर
गांडीव को उठाए ?
इसे चेतना का अटूट अंग बनाए ?
ताकि विनम्रता और सहनशीलता को
कोई कायरता न कह पाए।
अब आप ही बता दीजिए कोई उपाय।
२३/०४/२०२५.
Written by
Joginder Singh
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