लोग कितना भी जीवन में खुलेपन पर चर्चा परिचर्चा कर लें , उनके हृदय में कहीं न कहीं गहरे तक संकीर्णता रहती है , जिससे जीवन में व्याप्त खुशबू फलने फूलने फैलने की बजाय मतवातर बदबू में बदलती रहती है जो धीरे-धीरे तड़प में बदल कर भटकाती है। आओ , हम सब परस्पर मिलजुल कर रहें। हम सब जीवन पर्यन्त संकीर्णता से बचें , दिल और दिमाग से खुलापन अपनाते हुए समानता से जुड़ें , देश दुनिया और समाज में सुख समृद्धि और शांति के बलबूते सकारात्मक सोच से सतत सहर्ष आगे बढ़ें। संघर्षरत रहकर जीवन के सच को अनूभूत करें, सब नव्यता का ! भव्यता का !! आह्वान करें !! सृजन पथ चुनें, कभी भी विनाशक न बनें। हमेशा सत्य के आराधक बनें। २३/०४/२०२५.