कितना अच्छा हो सब कुछ सन्तुलन में रहे। कोई भी अपने आप को असंतुलित न करे। इसके लिए सब अपने मूल को जानें, भूल कर भी अज्ञान को चेतना पर हावी न होने दें। सब कुछ स्वाभाविक गति से अपने मंतव्य और गंतव्य की ओर बढ़ें। सब शांत रहें। शांति को अपने भीतर समेट परम की बाबत चिंतन मनन करें। सब संत बन कर सद्भावना से अपने आस पास को प्रेरित करें। वे ज्ञान की ज्योति को सभी के भीतर जागृत करें। वे सभी को समझाएं कि इस धरा पर उपस्थित आत्माएं सब दीप हैं। सब अपने प्रयासों से अपने भीतर ज्ञान का प्रकाश भरें ताकि अज्ञान जनित भय कुछ तो कम हो सके। लोग अधिक देर तक सोये न रहें। वे जागृत होकर सुख समृद्धि और सम्पन्नता को वर सकें। वे कण कण में परम की उपस्थिति को अनुभूत कर सकें। वे अपना जीवन सार्थक कर सकें। वे जीवन सत्य को जान सकें। वे अपनी मूल पहचान से वंचित न रहें। वे यथासमय अपनी शक्तियों और सामर्थ्य को संचित कर सकें। वे संतुलित जीवन को जीना सीख सकें। वे यह जीवन सत्य समझें कि जीवन में यदि संतुलन है तो ही सुरक्षा है , अन्यथा फैल सकती चहुं ओर अव्यवस्था है। अराजकता कभी भी जीवनचर्या को असंतुलित कर सकती है , सुख समृद्धि और सम्पन्नता को लील सकती है। यह शांति के मार्ग को अवरूद्ध कर सकती है। यह आदमी को आदमी के विरुद्ध खड़ा कर सकती है। अतः जीवन में संतुलन जरूरी है। मनुष्य के जीवन में संयम अपरिहार्य है। जो सबको स्वीकार्य होना चाहिए। इसके लिए सभी को अपना अहंकार भुलाकर संत समाज से जुड़ना होगा क्यों कि संत संयमित जीवन को जीते हैं, वे शांतमय मनोदशा में की निर्मिति करते हैं। वे मनुष्य को उसकी स्वाभाविक परिणति तक ले जाने में सक्षम हैं। वे संतुलित जीवन दृष्टि को स्पष्ट रूप से अपनी कथनी और करनी से एक करते हुए दिखलाते हैं , उसे व्यावहारिक बनाते हुए जीवन यात्रा को आगे बढ़ाते हैं। २०/०४/२०२५.