वक़्फ के मायने क्या हैं ? वक़्फ हुआ कि बवाल हुआ ? यह सवाल क्यों अब जेहन में एक पन्ने सा है फड़फड़ा रहा ? क्या वाक़िफ है जो वक़्फ का , उसे अवाम का अहसास उकसा रहा? वाक़िफ हो अगर तुम ख़ुदा के तो उसकी दुनिया में क्यों आग लगा रहे ? सड़कों पर उतर कर क्यों अराजकता फैला रहे ? यकीन तुम निज़ाम के फैसलों पर पहले करो जरा। निज़ाम अवाम के खिलाफ़ नहीं है , वह ज़हालत के खिलाफ़ जरूर है , इसने तरक्की की राह में रुकावट खड़ी की हुई है। वह मुफलिसों को उनके हक़ की बाबत अहसास कराना चाहता है। उनके हकों पर जिन उमरा अमीरों ने आज तक कब्ज़ा कर रखा है , निज़ाम उन्हें आज़ादी का अहसास करवाना चाहता है। भले उसे कोई बड़ी भारी कुर्बानी देनी पड़े। बाकी ज़िंदगी ग़ुरबत में बितानी पड़े। कौम कुर्बानियों से मुस्लसल आगे बढ़ी है। आज तारीख़ में एक ख्याल जुगनू सा जगमगा कर चिराग़ तले अंधेरे के सच को ढूंढने निकला है, आप उसका दिल से एहतराम कीजिए। वाक़िफ हो अगर तुम ख़ुदा के तो उसके बन्दों पर यकीन कीजिए। खुद को मौकापरस्ती और फिरकपरस्ती के कैदखानों में हरगिज़ हरगिज़ न बंद कीजिए। वक़्त की नाजुकता को महसूस कर के कोई फ़ैसला कीजिए। १९/०४/२०२५.