बेशक आपकी निगाह कितनी ही पाक साफ़ हों , जाने अनजाने ही सही यकायक यदि कोई गुनाह हो ही जाए तो यक़ीनन मन और तन में तनाव मतवातर बढ़ता जाता है , इस गुनाहगार होने का वज़न ज़िन्दगी को असंतुलित करता जाता है। सच बोलने से पहले अपने आप को तोलने से गुनाह करने के अहसास से झुके मन के पलड़े को संतुलित करता जाता है। यह जिंदगी बगैर मकसद एकदम बेकार है। कर्म करना , फल की चिंता न करना जीवन को सार्थकता की ओर ले जाता है , यह निरर्थकता के अहसास और गुनाहगार बनने से भी बचाता है। ऐसा जीवन ही हमें जीवन सत्य से सतत जोड़ता जाता है , जीवन पथ को निष्कंटक बनाता है। गुनाह का लगातार अहसास आदमी को भटकाता रहा है , यह मन पर वज़न बढ़ा कर आत्मविश्वास को खंडित कर देता है , आदमी को अपरोक्ष ही दंडित कर देता है। इस अहसास का शिकार न केवल कुंठित हो जाता है बल्कि वह बाहर भीतर तक कमजोर पड़कर जीवन रण में हारता जाता है। १९/०४/२०२५.