यह जीवन पथ एक रंगमंच है , जहाँ जहान तक को किस्सा कहानी और कहानी का विषय बनाकर संवेदना को संप्रेषित करने के मंतव्य से मन को हल्का करने में सक्षम खेल नित्य प्रति दिन हर पल , पलपल , हरेक क्षण खेला जाता है , जहाँ पर खेला हो जाता है ! जीव ठगा सा हतप्रभ रह जाता है। जीवन में बेशक कभी कभी अच्छा होने का नाटक करो मगर कभी अच्छा होने का प्रयास भी तो किया करो ताकि दुनियावी झमेलों से दूर रहकर, जीवन के मंच पर असमय ठोकरें खाने से बच सकें साधक । उनके जीवन में किसी को नीचा दिखाने के निमित्त की गई हँसी ठिठोली और हास परिहास बनें न कभी भी बाधक। सब जीव बन सकें परम शक्ति के आराधक। चेतना समस्त सृष्टि में व्याप्त है , इसे जानने के प्रयासों के दौरान भले ही जीवन में कभी लगने लगे कि अब सब समाप्ति के कगार पर है , मन में निराशा और हताशा भरती लगे , पर भूलो नहीं कि जीवन में कभी भी कुछ भी समाप्त होता नहीं है, बस पदार्थ अपनी अवस्था बदलता है। कण कण में जीवन नियंता और प्राणहंता यहां वहां सब जगह व्याप्त हैं। फिर भी सोचो जरा कि यह जीवन की अनुभूति भला हम से कभी दूर रह पाएगी ? बल्कि यह जीवन के साथ भी और बाद भी चेतना बनकर साथ रहेगी , जन्म जन्मांतर तक हम सब को कर्म चक्र से बांधें रखकर समृद्ध करती रहेगी ! हमारा होना भी एक नाटक भर है , अतः इसे तन और मन से खेलो। नाटक देखो ही नहीं , इसे जीयो भी । यहाँ सब कुशल अभिनेता हैं और परम हम सब का निर्देशक! और साथ ही दर्शक भी ! अपनी भूमिका को निभाओ दिल से! जीवन को जीयो जी भर कर ! बेशक कभी कभी नाटक भी करना पड़े तो डरो कतई नहीं। वर्तमान नाटक ही तो है ! अतीत यानिकि व्यतीत भी नाटक ही था! आने वाले क्षण भी नाटकीयता से भरपूर रहने वाले हैं ! भूल कर अपने समस्त डर ! निरन्तर आगे बढ़ना ही अब श्रेयस्कर है। समय समर्थ है! उसके सामने कभी न कभी गुप्त भेद भी प्रकट हो जाते हैं !! अतः जीवन को भरपूर नाटकीयता से जी लेना चाहिए। कोई संकोच या बहानेबाजी से बचना चाहिए। १३/०४/२०२५.