ज़िन्दगी में दुराव छिपाव का सिलसिला बहुत पुराना है , यदि ये न हो तो ज़िन्दगी नीरस हो जाती है , सरसता गायब हो जाती है।
ज़िन्दगी में भूल कर भी न बनिए कभी खुली किताब , यह खुलापन कभी कभी किसी को बेशक अच्छा लगे , पर पीठ पीछे ख़ूब भद्द पीटे। अतः दुराव छिपाव अत्यंत ज़रूरी है , इसे जानने के चक्कर में पड़कर जीवन यात्रा में रोमांच बना रहता है , आदमी क्या औरत तक जीवन में परस्पर एक दूसरे से नोक झोंक करते रहते हैं। वे अक्सर दुराव छिपाव रख कर रोमांचित होते रहते हैं। यदि देव योग से कभी भेद खुल जाए तो बहाने बनाने पड़ जाते हैं। १२/०४/२०२५..