हार मिलने पर उदास होना स्वाभाविक है। यह कभी कभी जख्मों को हरा कर देती है। यह मन में पीड़ा भी पैदा करती है , जिससे बेचैनी देर तक बनी रहती है। मन के कैनवास पर अपनी हार को किस रंग में अभिव्यक्त करूं ? इस बाबत जब भी सोचता हूँ , ठिठक कर रह जाता हूँ। क्या हार का रंग बदरंग होता है , जो कभी मातमी माहौल का अहसास कराता है , तो कभी मिट्टी रंगी तितलियों में बदल जाता है , भीतर मंडराता रहता है। कभी कभी हार को उपहार देने का मन करता है, अपनी हरेक हार के बाद आत्म साक्षात्कार की खातिर भीतर उतरता हूँ , अपने परों की मजबूती को तोलता हूँ ताकि फिर से जीवन संघर्ष कर सकूं हार के बदरंग के बाद तितली के रंगों को मन के कैनवास पर उतार सकूँ ! हार ,जीत , हास परिहास , आम और ख़ास का कोलाज निर्मित कर सकूँ , उस पर एक कल्पना का संसार उतार सकूँ। क्या सभी के पास हार का रंग बदरंग होता है या फिर अलग अलग ! जो करता रहा है आदमी की कल्पना को वास्तविकता से अलग थलग !! १२/०४/२०२५.