कितना अच्छा हो इस उतार चढ़ाव भरे दौर में हम सब आगे बढ़ते रहें, हमारे मन प्रदूषण से दूर रहें, हम परस्पर सहयोग और सहानुभूति से रहें।
जब कभी भी आदमी के भीतर थोड़ा सा लोभ, काम,लालच,ईर्ष्या घर करता है , वह जीवन पथ पर रूकावटें खड़ी कर लेता है। आदमी और आदमी के बीच एक दीवार खड़ी हो जाती है , वह सब कुछ को संदेह और शक के घेरे में लेकर देखने लगता है। उसके भीतर कुढ़न बढ़ जाती है। कल तक जो रिश्ते प्यार और सुरक्षा देते लगते थे वे घुटन बढ़ाते होते हैं प्रतीत। सब कुछ समाप्त होता हुआ लगता है , जिससे भीतर ही भीतर डर भरता चला जाता है। संबंध दरकने लगते हैं।
आओ हम सब अपना जीवन ईमानदारी और पारदर्शिता से व्यतीत करें , ताकि संबंध बचे रहें, सब निर्द्वंद रहकर जीवन को गरिमा और सुखपूर्वक जीएं। दीर्घायु होकर सात्विकता के साथ जीवन यात्रा निर्विघ्न सम्पन्न करें। हम सब संबंधों में जीवन की खुशबू की अनुभूति कर सकें। ११/०४/२०२५.