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Apr 10
दुनिया
निन्यानवे के फेर में
पड़ कर
आगे बढ़ रही है ,
खूब तरक्की
कर रही है!
जबकि
आदमी
इसी निन्यानवे के
फेर में
फंस कर
अपना सुख और सुकून
गंवा बैठा है ,
वह यह क्या
कर गया है ?
किस सुख की खातिर
शातिर बन गया है ?
जीवन का सच है कि
सुख
धन की तरह
किसी एक को होकर
नहीं रहा,
वह यायावर बना  
सतत्
यात्रा कर रहा।
आज
वह आपके पास
तो हो सकता है कि
कल
वह किसी धुर विरोधी के
पास
अपनी उपस्थिति का
करा रहा
अहसास हो।
वह उड़ा रहा
निन्यानवे के फेर का
उपहास हो।
जीवन में
निन्यानवे के फेर में रहा ,
कभी सुख का
एक पल कभी
जोड़ नहीं सका ,
बेशक सूम बना रहा ,
परिवार की आंख में
किरकिरी बना रहा !
सबको बुरा लगता रहा !
यह दर्द चुपचाप सहता रहा !!
१०/०४/२०२५.
Written by
Joginder Singh
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