यह सहानुभूति ही है जिसने मानवीय संवेदना को जीवंतता भरपूर रखा है, रिश्तों को पाक साफ़ रखा है। वरना आदमी कभी कभी वासना का कीड़ा बनकर लोक लाज त्याग देता है , बेवफ़ाई के झूले में झूलने और झूमने लगता है।
प्रेम विवाह के बावजूद आजकल बहुधा पति पत्नी के बीच तीसरा आदमी निजता को खंडित कर देता है , फलस्वरूप तलाक़ हलाक़ करने का खेल चुपके चुपके से खेलता है, कांच का नाज़ुक दिल दरक जाता है। दुनियादारी से भरोसा उठ जाता है। इसका दर्द आँखें छलकने से बाहर आता है। इस समय आदमी फीकी मुस्कराहट के साथ अपने भीतर की कड़वाहट को एक कराहट के साथ झेल लेता है। अभी अभी अख़बार में झकझोर देने वाली खबर पढ़ी है। तलाकशुदा पत्नी को जब पहले पति की लाइलाज बीमारी की बाबत विदित हुआ तो उसने गुज़ारा भत्ता लेने से इंकार कर दिया। यह सहानुभूति ही है जिसने रिश्ते को अनूठे रंग ढंग से याद किया । अपने रिश्ते की पाकीज़गी की खातिर त्याग किया। सहानुभूति और संवेदना से भरा यह रिश्ता अंधेरे में एक जुगनू सा टिमटिमाता रहना चाहिए। वासना की खातिर जीवनसाथी को छोड़ा नहीं जाना चाहिए। परस्पर सहानुभूति रखने वालों को यह सच समझ आना चाहिए। छोटी मोटी भटकनों को यदि हो सके तो नजरअंदाज करना चाहिए। मन ही मन अपनी ग़लती को सुधारने का प्रयास किया जाना चाहिए। वरना जीवन और घर ताश के पत्तों से निर्मित आशियाने की तरह थोड़ी सी हवा चलने ,ठेस लगने से बिखर जाता है। आदमी और उसकी हमसफ़र कभी संभल नहीं पाते हैं। जीवन यात्रा से सुख और सुकून लापता हो जाता है। अच्छा है कि हम अपने संबंधों और रिश्तों में सहानुभूति को स्थान दें , ताकि समय रहते टूटने से बच सकें और जीवन में सच की खोज कर सकें। ०६/०४/२०२५.