अन्याय तन मन में आग लगाता रहा है , यह भीतर को फूंकता ही नहीं , बल्कि आदमी को हद से ज़्यादा बीमार और लाचार बना देता है , यह थका देता है। अन्याय ज़ोर ज़बरदस्ती जबरन झुकने के लिए बाध्य करने वाला धक्का है , यह वह थपेड़ा है, जिसने यकायक आदमी को भीतर तक तोड़ा है। इसका विरोध हर सूरत में होना ही चाहिए। अन्याय से मुक्ति के लिए कोई जन आन्दोलन होना ही चाहिए। कौन सहेगा अन्याय अब और अधिक देर तक इस बाबत सब को समय रहते विरोध की खातिर खड़ा होना ही चाहिए। कोई भी व्यक्ति इसका शिकार नहीं बनना चाहिए। बस इस की खातिर सब को स्वयं को जागरूक बनाना होगा , विरोध करने का बीड़ा उठाना होगा , समय बार बार नहीं देता समाज से अन्याय और शोषण जैसी गन्दगी साफ़ करने का मौका। अब भी विरोध का सुर बुलन्द न किया तो यह निश्चित है कि भविष्य अनिश्चित काल तक धूमिल बना रहेगा, इसके साथ ही मिलता रहेगा सब को क़दम क़दम पर धोखा। अन्याय का विरोध करना सब का फ़र्ज़ है , विरोध से पीछे हटना और डरना बन चुका है अब मर्ज़ समाज में। आज अन्याय को कौन सहे ? क्यों अब सब देर तक मौन रहें ? क्यों न सब विरोध और प्रतिरोध के सुर मुखर करें ? वे अन्याय और शोषण की ख़िलाफत करें । ०६/०४/२०२५.