राजनीति में मुद्दाविहीन होना नेतृत्व का मुर्दा होना है। नेतृत्व इसे शिद्दत से महसूस कर गया। अब इस सब की खातिर कुछ कुछ शातिर बन रहा है। यही समकालीन राजनीतिक परिदृश्य में यत्र तत्र सर्वत्र चल रहा है। बस यही रोना धोना जी का जंजाल बन रहा है। नेता दुःखी है तो बस इसीलिए कि उसका हलवा मांडा पहले की तरह नहीं मिल रहा है। उसका और उसके समर्थकों का काम धंधा ढंग से नहीं चल रहा है। जनता जनार्दन अब दिन प्रतिदिन समझदार होती जा रही है। फलत: आजकल उनकी दाल नहीं गल रही है। समझिए! ज़िन्दगी दुर्दशा काल से गुज़र रही है। राजनीति अब बर्बादी के मुहाने पर है! बात बस अवसर भुनाने भर की है , दुकानदारी चलाने भर की है। मुद्दाविहीन हो जाना तो बस एक बहाना भर है। असली दिक्कत ज़मीर और किरदार के मर जाने की है , हम सब में निर्दयता के भीतर भरते जाने की है। इसका समाधान बस गड़े मुर्दों को समय रहते दफनाना भर है , मुद्दाविहीन होकर निर्द्वंद्व होना है ताकि मुद्दों के न रहने के बावजूद सब सार्थक और सुरक्षित जीवन पथ पर चलते रहें। वे सकारात्मक सोच के साथ जीवन में दुविधारहित होकर आगे बढ़ सकें , आपातकाल में डटे रहकर संघर्ष कर सकें। ०४/०४/२०२५.