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Apr 3
आज के तेज रफ़्तार के
दौर में
अंदर व्यापे
अशांत करने वाले
शोर में
अचानक लगे
ट्रैफिक जाम में
धीरे धीरे
वाहनों का आगे बढ़ना
किसी को भी अखर सकता है ,
तेज़ रफ़्तार का आदी आदमी
अपना संयम खोकर
भड़क सकता है।
वह
अचानक
क्रोध में आकर
दुर्घटनाग्रस्त हो ,
जाने पर परेशान हो ,
तनावग्रस्त हो जाता है।
इस दयनीय अवस्था में
आज का आदमी
सचमुच
नरक तुल्य जीवन में फंसकर
अपना सुख चैन गंवा लेता है।
ऐसी मनोस्थिति में
वह क्या करे ?
वह कैसे अपने भीतर धैर्य भरे ?
वह कैसे संयमित होने का प्रयास करे ?
आओ इस बाबत
हम सब मिलकर विचार करें।

संयम के
अभाव में
धीमी गति
असह होती है ,
यह मन में
झुंझलाहट भरती है।
कभी कभी तो यह
आदमी को
बिना उद्देश्य से चलने वाली
एक ब्रेक फेल गाड़ी की तरह
व्यवहार करने को
बाध्य करती है ,
इस अवस्था में
आदमी की बुद्धि के कपाट
बंद हो जाते हैं ।
आदमी
लड़ने झगड़ने पर
आमादा हो जाते हैं।
अच्छी भली ज़िन्दगी में
गतिहीनता का अहसास
पहले से व्याप्त घुटन में
इज़ाफ़ा कर देता है।
आदमी
रुकी हुई जीवन स्थिति का
न चाहकर भी
बन जाता है शिकार!
वह कुंठित होकर
जाने अनजाने
बढ़ा लेता है
अपने भीतर व्यापे मनोविकार,
जिन्हें वह सफ़ाई से
छुपाता आया है,
वे सब मनोविकार
धीरे-धीरे
लड़ने झगड़ने की स्थिति में
होने लगते हैं प्रकट !
जीवन के आसपास
फैल जाता है कूड़ा कर्कट!
धीमी गति से
आज के तेज़ रफ़्तार
जीवन में
स्थितियां परिस्थितियां
बनतीं जाती हैं विकट !
विनाश काल भी
लगने लगता है अति निकट !!
कभी कभी
जीवन में धीमी गति
कछुए को विजेता
बना देती है।
परन्तु
जिसकी संभावना
आज के तेज़ तर्रार रफ़्तार भरे जीवन में
है बहुत कम।
तेज़ रफ़्तार जीवन
आदमी को
न चाहकर भी
बना देता है निर्मम!
और जीवन में व्याप्त  धीमी गति
आदमी को बेशक
दुर्घटनाग्रस्त होने से बचाती है!
यह निर्विवाद सब को
गंतव्य तक पहुंचाती है !
तेज़ रफ़्तार वाले युग का मानस
इस सच को कभी तो समझे !
वह जीवन में
धीमी गति होने के बावजूद
किसी से न उलझे !
बल्कि वह शांत चित्त होकर
अपनी अन्य समस्याओं को सुलझाए।
व्यर्थ ही जीवन को
और  ज़्यादा  उलझाता न जाए।
वह अपने क़दम धीरे धीरे आगे बढ़ाए।
ताकि जीवन में
सुख समृद्धि और शांति को तलाश पाए।
०३/०४/२०२५.
Written by
Joginder Singh
37
 
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