कल अख़बार में एक सड़क दुर्घटना में मारे गए तीन कार सवार युवकों की दुखद मौत की बाबत पढ़ा। लिखा था कि दुर्घटना के समय बैलून खुल नहीं पाए थे, बैलून खुलते तो उन युवाओं के असमय काल कवलित होने से बचने की संभावना थी। इसके बाद एक न्यूज बॉक्स में ऑटो एक्सपर्ट की राय छपी थी कि सीट बैल्ट बांधने पर ही बैलून खुलते हैं , अन्यथा नहीं। मेरे जेहन में एक सवाल कौंधा था , आखिर सीट बैल्ट बांधने में कितना समय लगता है ? चाहिए यह कि कार की अगली सीटों पर बैठे सवार न केवल सीट बैल्ट लगाएं बल्कि पिछली सीट पर सुशोभित महानुभाव भी सीट बैल्ट को सेफ़्टी बैल्ट मानकर सीट बैल्ट को बांधने में कोई कोताही न करें । सब सुरक्षित यात्रा का करें सम्मान , ताकि कोई गवाएं नहीं कभी जान माल। सब समझें जीवन का सच दुर्घटनाग्रस्त हुए नहीं कि हो जाएंगे हौंसले पस्त ! साथ ही सपने भी ध्वस्त !!
अतः यह बात पल्ले बांध लो कि किसी वाहन पर सवार होते ही सीट बैल्ट और अन्य सुरक्षा उपकरणों को पहन लो। आप भी सुरक्षित रहो , साथ ही जनधन भी बचा रहे। ज़िन्दगी का सफ़र भी आगे बढ़ता रहे। आकस्मिक दुर्घटना का दंश भी न सहना पड़े। ०२/०४/२०२५.