हरेक क्षेत्र में हरेक जगह एक मसखरा मौजूद है जो ढूंढना चाहता अपना वजूद है वह कोई भी हो सकता है कोई मसखरा या फिर कोई तानाशाह जो चाहे बस यही सब करें उसकी वाह! वाह! अराजकता की डोर से बंधे तमाम मसखरे और तानाशाह लगने लगे हैं आज के दौर के शहंशाह! जिन्हें देखकर तमाशबीन भीड़ भरने को बाध्य होगी आह और कराह! शहंशाह को सुन पड़ेगी यह आह भरी कराहने की आवाजें वाह! वाह!! ...के स्वर से युक्त करतल ध्वनियों में बदलती हुईं ! तानाशाह के अहंकार को पल्लवित पुष्पित करती हुईं !! ०१/०४/२०२५.