तुम कभी बहुत ताकतवर रहे होंगें कभी , समय आगे बढ़ा , तुम ने भी तरक्की की होगी कभी , जैसे जैसे उम्र बढ़ी , वैसे वैसे शक्ति का क्षय , सामर्थ्य का अपव्यय महसूस हुआ हो कभी ! बरबस आंखों में से झरने सा बन कर अश्रु टप टप टपकने लगने लगे हों कभी। अपनी सहृदयता ही कभी लगने लगी हो अपनी कमज़ोरी और कमी। इसके विपरीत धुर विरोधियों ने कमीना कह कर सतत् चिढ़ाया हो और भावावेश में आकर भीतर बाहर यकायक गुस्सा आन समाया हो। इस बेबसी ने समर्थवान को आन रुलाया हो।
समर्थ के आंसू पत्थर को पिघलाने का सामर्थ्य रखते हैं , पर जनता के बीच होने के बावजूद ये आंसू समर्थ को सतत् असुरक्षित करते रहते हैं , सत्तासीन सर्वशक्तिमान होने पर भी निष्ठुर बने रहते हैं। वे स्वयं असुरक्षित होने का बहाना बना लेते हैं , वे बस जाने अनजाने अपना उपहास उड़वा लेते हैं , मगर उन पर अक्सर कोई हंसता नहीं , उन्हें अपने किरदार की अच्छे से समझ है कि यदि कोई स्वभावतया भी हंस पड़ता है तो झट से धड़ अलग हुआ नहीं , सब वधिक को , उसके आका को ठहरायेंगे सही। समर्थ को सतत् सक्रिय रहकर आगे बढ़ना पड़ता है , क़दम क़दम पर जीवन के विरोधाभासों से निरंतर लड़ना पड़ता है। समर्थ के आंसू कभी बेबसी का समर्थन नहीं करते हैं। ये तो सहजता से बरबस निकल पड़ते हैं। हां,ये जरूर मन के भीतर पड़े गर्दोगुब्बार को धोकर एक हद तक शांत करते हैं। वरना समर्थ जीवन पर्यन्त समर्थ न बना रहे। वह अपने अंतर्विरोधों का स्वयं ही शिकार हो जाए। आप ही बताइए कि वह कहां जाए ? वह कहां ठौर ठिकाना पाए ? ०१/०४/२०२५.