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Mar 29
जीवन भर भागता रहा
कृत्रिम खुशियों के पीछे।
हरेक तरीके से
अपनी स्वार्थ पूर्ति के लिए
छल प्रपंच का सहारा लिया,
अब भीतर तक गया हूं ‌रीत
सो सबने किनारा कर लिया।
आपाधापी
और
मारामारी के दौर में
चहुं ओर
मचा था शोर ।
बस यह कोलाहल
बाहर बाहर तक सीमित रहा,
कभी भी भीतर नहीं गया।
भीतर भी कुछ है,
इस तरफ़ नहीं गया ध्यान।
बस भागता रहा
जीवन में
पगलाया हुआ।
अब शरीर कमजोर है,
रहा नहीं मन और तन पर
नियंत्रण !
यातना शिविर का अहसास
कराता है अब
पल पल रीतता जाता जीवन।
अपने बीते को याद कर
अक्सर सोचता हूं,
व्यर्थ ही माया मोह में बंधा रहा ,
सारी उम्र अंधा बना रहा।
मैं कब किसी के लिए
उपयोगी बना ?
कुछ उसका काज संवरें,
इस खातिर
कभी सहयोगी बना।
नहीं न!
फिर  पछतावा कैसे?
फिर फिर घूम घाम कर
पछतावा आए न क्यों ?
यह रुलाए न क्यों ?
शायद
कोई भीतर व्यापा
अन्त:करण का सच
रह रह कर पूछता हो ,
आज मानसजात
जा रही किस ओर !
आदमी को
दुःख की लंबी अंधेरी
रात के बाद
कब दर्शन देगी भोर ?
....कि उसका
खोया आत्मविश्वास जगे ,
वह कभी तो संभले ,
उसे जीने के लिए
संबल मिले।
आदमी
इस जीवन यात्रा में
अध्यात्म के पथ पर बढ़े ।
या फिर वह
अति भौतिकवादी होकर
पतन के गर्त में
गिरता चला जाएगा।
क्या वह कभी संभल नहीं पाएगा ?
यदि आपाधापी का यह दौर
यूं ही अधिक समय तक चलता रहा,
तो आदमी कब तक पराजय से बच पाएगा।
यह भी सच है कि रह रह कर मिली हार
आदमजात को भीतर तक झकझोर देती है,
उसे कहीं गहरे तक तोड़ दिया करती है,
भीतर निराशा हताशा भर दिया करती है,
आत्मविश्वास को कमजोर कर
आंशका से भर , असमय मृत्यु का डर भर कर
भटकने के लिए निपट अकेला छोड़ दिया करती है।
ऐसी मनोस्थिति में
आदमी भटक जाया करता है ,
वह जीवन में
असंतुलन और असंतोष का
शिकार हो कर
अटक जाया करता है।
आजकल
बाहर फैला शोरगुल
धीरे-धीरे
अंदर की ओर
जाने को उद्यत है ,
यह भीतर डर भर कर
आदमजात को
तन्हां और बेघर करता जा रहा है।
आदमी अब पल पल
रीतता और विकल होता जाता है।
उसे अब सतत्
अपने अन्तःकरण में
शोरगुल सुनाई देता है।
इससे डरा और थका आदमी
आज जाए तो जाए कहां ?
अब शांति की तलाश में
वह किस की शरण में जाए ?
अति भौतिकता ने
उसे समाप्त प्रायः कर डाला है।
अब उसका निरंकुशता से पड़ा पाला है।
भीतर का शोर निरंतर
बढ़ता जा रहा है ,
काल का गाल
उसे लीलता ही नहीं
बल्कि छीलता भी जा रहा है।
वह मतवातर कराहता जा रहा है।
पता नहीं कब उसे इस अजाब से छुटकारा मिलेगा ?
अब तो अन्तःकरण में बढ़ता शोरगुल सुनना ही पड़ेगा...सुन्न होने तक!
२९/०३/२०२५.
Written by
Joginder Singh
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