ध्यान से सुनें , अपने इर्द गिर्द तामझाम का मुलम्मा चढ़ाने वाले , दिखावे का महाप्रसाद तैयार करने वाले। यह सब क्या है ? इस आडंबर रचने की वज़ह क्या है ? इस दिखावे की बीमारी की दवा कहां है ? यह सब कुछ क्या है ? आप सबको हुआ क्या है ? दिखावे से क्षुब्ध आदमी के अंदर बहुत से सवालात भीतर पैदा होते रहते हैं ! उसे दिन रात सतत मथते रहते हैं !! सवालात की हवालात में बंद करके, उसे बेचैन करते रहते हैं !! आज आदमी क्या करे ? किस पर वह अपना आक्रोश निकाले ? अच्छा हो कि देश दुनिया और समाज दिखावा करने वालों को निर्वासित कर दे ताकि वे अप्रत्याशित ही किसी साधारण मनुष्य को कुंठित न कर सकें। दिखावे और आडंबर के मकड़जाल में उलझाकर अशांति और अराजकता को फैलाकर जीवन को अस्त व्यस्त कर आदमी के भीतर तक असंतोष और डर न भर दें। एक हद तक तामझाम अच्छा लग सकता है , परन्तु इसकी अति होने पर यह विकास की गति को बाधित करता है। अच्छा रहे कि लोग इससे बचें। वे सादगीपूर्ण जीवन जीने की ओर बढ़ें। बल्कि वे आपातकाल में संघर्षरत रहकर जीवन धारा को स्वाभाविक रूप से बहने दें ! इस की खातिर वे स्वयं को संतुलित भी करें , ताकि जीवन में सब सहजता से आगे बढ़ सकें। तामझाम का आवरण अधिक समय तक टिक नहीं पाता है , यह आदमी को दुर्दशा की तरफ धकेल कर , सुख समृद्धि और सम्पन्नता से वंचित कर देता है , भटकने के लिए अकेलेपन से जूझने के निमित्त असहाय,दीन हीन अवस्था में छोड़ प्रताड़ित करता है , सतत् डर भरकर आदमी को बेघर करता है। २८/०३/२०२५.