किसी के उकसावे में आकर बहक जाना कोई अच्छी बात नहीं। यह तो बैठे बिठाए मुसीबत मोल लेना है ! ठीक परवाज़ भरने से पहले अपने पंखों को घायल कर लेना है ! लोग अक्सर हरदम अपना स्वार्थ पूरा करने के लिए उकसावे को हथियार बना कर अपना मतलब निकालते हैं ! जैसे ही कोई उनका शिकार बना वे अपना पल्लू झाड़ लेते हैं ! वे एकदम अजनबियत का लबादा ओढ़ कर एकदम भोले भाले बने से मुसीबत में पड़ चुके आदमी की बेबसी पर पर मन ही मन खुश होते हैं। ऐसे लोग किसके हितचिंतक होते हैं ? किसी के उकसाने पर भूले से भी बहक जाना कोई अक्लमंदी नहीं, दोस्त ! थोड़ा होशियार बनो तो सही। अपने को परिस्थितियों के अनुरूप ढालने का प्रयास करो तो सही। देखना, धीरे धीरे सब कमियाँ दूर हो जाएंगी। सुख समृद्धि और संपन्नता भी बढ़ती जाएगी। किसी के कहने में आने से सौ गुणा अच्छा है , अपनी योग्यता और सामर्थ्य पर भरोसा करना , जीवन यात्रा के दौरान अपने प्रयासों को संशोधित करते रहना। जीवन में मनमौजी बनकर अपनी गति से आगे बढ़ना। किसी के भी उकसावे में आना अक्ल पर पर्दा पड़ना है। अतः जीवन में संभल कर चलना बेहद ज़रूरी है , अन्यथा आदमी की स्वयं तक से बढ़ जाती दूरी है। वह धीरे धीरे अजनबियत के अजाब में खो जाता है। आदमी के हाथ से जीने का उद्देश्य और उत्साह फिसलता जाता है। उकसावा एक छलावा है बस! इसे समय रहते समझ! और अपनी डगर चलता जा! ताकि अपनी संभावना को सके ढूंढ !! २६/०३/२०२५.