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Mar 22
यह सुनने में बड़ा अच्छा लगता है कि
जल है तो कल है,
सुखद भविष्य के लिए
जल का संचयन करें ,
कुदरत माँ को समृद्ध करें।
परंतु आदमी के क्रिया कलाप
विपरीत ही ,
पूर्णतः विरोधाभासी होते हैं,
समय पर वर्षा न होने पर
सब रोते कुरलाते हैं,
उन्हें अपने कर्म याद आते हैं।
आज विश्व जल दिवस के दिन
माली जी ने मुझे चेताया कि
साहब , मैं छुट्टियां लेकर क्या घर गया !
पौधों को पानी न मिलने के कारण
सारा बगीचा मुरझा गया।
आप जो लीची का जो पौधा लेकर आए हैं ,
यह भी सूख गया है !
आप का पैसा बर्बाद हुआ।

अब गर्मी आ गई है ,
पानी ज़्यादा  चाहिएगा ,
वरना पौधे कुमल्हा जायेंगे!
वे बिन आई मौत मारे जायेंगे!!
जैसे लीची का पौधा
पानी न मिलने से मर गया।

मुझे ख्याल आया कि
जल का संरक्षण कितना अपरिहार्य है।
यह जीने की शर्त अनिवार्य है।
फिर हम सब क्यों कोताही करें?
क्यों न सब अपनी संततियों के लिए
कुछ समझदार बनें ,
जल को यूं ही न बर्बाद करें।


माली जी ने मुझे चेताया था।
कुछ कुछ अक्लमंद बनाया था।
थोड़ी सी लापरवाही ने लीची के पौधे की
जान ले ली थी।
भविष्य की समृद्धि पर भी
कुछ रोक लग गई थी।
बेशक इसे आदमी चंद रुपयों का नुकसान समझे,
पर सच यह है ,
पेड़ एक बार पल जाने पर
सालों साल समृद्धि का उपहार देते हैं!
वे जीवन को खुशहाली का वरदान भी देते हैं!!
२२/०३/२०२५.
Written by
Joginder Singh
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