आदमी अपने अंतर्विरोधों से लड़े। वह कभी तो इनके खिलाफ़ खड़े होने का साहस जुटाए, अन्यथा उसका जीवनाधार धीरे धीरे दरकता जाए। इसे समझकर, विषम परिस्थितियों में खुद को परखकर जीवन के संघर्षों में जुटा जाता है, हारी हुई बाज़ी को पलटा जाता है। इतनी सी बात यदि किसी की समझ में न आए, तो क्या किया जा सकता है ? ऐसे आदमी की बुद्धि पर तरस आता है। जब आदमी को हार के बाद हार मिलती रहे, तो उसे लगातार डराने लगता सन्नाटा है। इस समय लग सकता है कि कोई जीवन की राह में रुकावट बन आन खड़ा है, जिसने यकायक स्तंभित करने वाला झन्नाटेदार चांटा जड़ा है !! गाल और अंतर्मन तक लाल हुआ है !! मन के भीतर बवाल मचा है !!
आदमी को चाहिए कि अब तो वह नैतिक साहस के साथ जीवन में जूझने के निमित्त खड़ा हो ताकि जीवन में पनप रहे अंतर्विरोधों का सामना वह कभी तो सतत् परिश्रम करते हुए करे, कहीं यह न हो कि वह जीवन पर्यंत डरता रहे, जीवन में कभी कुछ साहसिक और सार्थक न कर सके। ऐसा मन को शांत रखना सीख कर सम्भव है। इसकी खातिर शान्त चित्त होना अपरिहार्य है, ताकि आदमी बेरोक टोक लक्ष्य सिद्धि कर सके, वह जीवन की विषमताओं से मतवातर लड़ सके, जीवन धारा के संग संघर्ष रत रहकर आगे बढ़ सके। 20/03/2025.