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Mar 20
व्यर्थ का भाषा विवाद
न केवल
संवाद में
बाधक सिद्ध होता है ,
बल्कि
यह एक झूठ बोलने से भी अधिक
ख़तरनाक है ,
जो देश, दुनिया में
आदमी की अस्मिता पर
करता कुठाराघात है।
यही नहीं
यह समाज विशेष की
प्रगति को भी देता है रोक।
यह प्रबुद्ध बुद्धिजीवियों में
उत्पन्न कर देता है
आदमी को
झकझोर देने में सक्षम
अंतर्चेतना को उद्वेलित करती
शोक की लहरें।

इस समय देश में
भाषा विवाद को
भड़काया जा रहा है ,
हिंदी का भय दिखलाकर
अपनी राजनीतिक रोटियों को
सेका जा रहा है।
कितना अच्छा हो , हिंदीभाषी भी
दक्षिण की भाषाएं सीख लें।
वे हिंदी में डब्ब की
दक्षिण भारत की फिल्में
मूल भाषा में देखकर
संस्कृति का आनंद उठाएं,
अपनी समझ बढ़ाएं।

एक  ऐसे समय में
जब कुछ भाषाएं
मरण शैय्या के नजदीक
विलुप्ति की कगार पर हैं,
तो क्यों न उनको अपनाया जाए।
क्यों व्यर्थ के भाषा प्रकरण पर
विवाद बढ़ाया जाए ?
आओ इस बाबत संवाद रचाया जाए।
राष्ट्रीय एकता के स्वरों से
देश को आगे बढ़ाया जाए।
२०/०३/२०२५.
Written by
Joginder Singh
49
 
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