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Mar 17
संबंध बड़े कोमल होते हैं
ये बनते बनते,बनते हैं
थोड़ी सी गफलत
हुई नहीं कि
धरधराकर
रेत से झर
जाते हैं,
यह
कभी हो
नहीं सकता कि
ये फिर से दृढ़ता की
डोर में बंध जाएं,
हम पूर्ववत
बेतकुल्ल्फी से
एक दूसरे से
खुलकर
मिल पाएं !
अब
आप ही बता दो
हम परस्पर
विश्वास को
दृढ़ करें
कि लड़ें !
क्यों न हम
एक दूसरे से
सहयोग करें ,
परस्पर
पुष्पित पल्लवित
होने के मौके
मयस्सर
करते रहें ,
आगे बढ़ें ,
सुध बुध
लेते रहें,
ताकि
दृढ़ होती रहें
संबंधों की जड़ें !
संबंध नाजुक होते हैं ,
गफलत हुई नहीं कि
ये मुरझा जाते हैं !
ऐसे में
सब तने तने रहते हैं !
भीतर , भीतर कुढ़ते रहते हैं !
न चाहकर भी
अंदर सहम भर जाता है !
अनिष्ट का वहम भरता रहता है !
आदमी हरपल सड़ता रहता है !!
१७/०३/२०२५.
Written by
Joginder Singh
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