जंगल राज का ताज जिसके पुरखों के सिर पर कभी सजा था , उस वंश के नौनिहाल के मुखारविंद से सुनने को मिले कि राज में कानून व्यवस्था चौपट है । यह सब कई बार अजीब सा लगता है। शुक्र है कि यह नहीं कहा गया ... यह जंगलराज राज के नसीब में लिखा गया लगता है। हर दौर में व्यवस्था सुधार की और बढ़ती है,परंतु कुटिलता विकास को पटरी से उतार दिया करती है। ऐसे में सुशासन भी कुशासन की प्रतीति कराने लगता है ! यह आम आदमी के भीतर डर पैदा कर देता है। आदमी बदलाव के स्वप्न देखने लगता है। बदलाव हो भी जाता है , यह बदलाव बहुधा जंगल राज लेकर आता है , इसका अहसास भी बहुत देर बाद होता है , तब तक चमन लुटपिट चुका होता है, जीवन का हरेक कोना अस्त व्यस्त हो चुका होता है। अच्छा है कि नेतागण बयान देने से पहले अपने गिरेबान में झांकें , और तत्पश्चात देश समाज और राज्य को विकसित करने का बीड़ा उठाएं। जीवन को सुख, समृद्धि और संपन्नता से भरपूर बनाएं। जीवन को जंगल राज के गर्त में जाने से बचाएं। १७/०३/२०२५.