जीवन में किसी से अपेक्षा रखना ठीक नहीं, यह है अपने को ठगना। यदि कोई आदमी आपकी अपेक्षा पर खरा उतरता नहीं है, तो उसकी उपेक्षा करना, है नितांत सही। कभी कभी अपेक्षा आदमी द्वारा अचानक ही जब जीवन की कसौटी पर परखी जाती है और यह सौ फीसदी खरी उतरती नहीं है, तब अपेक्षा उपेक्षा में बदल कर मन के भीतर विक्षोभ करती है उत्पन्न ! आदमी रह जाता सन्न ! वह महसूसता है स्वयं को विपन्न ! ऐसे में अनायास उपेक्षा का जीवन में हो जाता है प्रवेश! जीवन पथ के पग पग पर होने लगता है कलह क्लेश !!
आदमी इस समय क्या करे ? क्या वह निराशा में डूब जाए ? नहीं ! वह अपना संतुलन बनाए रखे। वह मतवातर खुद को तराशता जाए। वह स्वयं को वश में करे ! वह उदास और हताश होने से बचे ! अपने इर्द गिर्द और आसपास से हर्गिज़ हर्गिज़ उदासीन होने की उसे जरूरत नहीं। ऐसी किसी की कुव्वत नहीं कि उसे उपेक्षा एक जिंदा शव में बदल दे । ऐसा होने से पहले ही आदमी अपने में साहस और हिम्मत पैदा करे , वह अपनी आंतरिक मनोदशा को दृढ़ करे। वह जीवन के उतार चढ़ावों और कठिनाइयों से न डरे।
अच्छा यही रहेगा कि वह कभी भी अपेक्षा और उपेक्षा के पचड़ों में न ही पड़े , ताकि उसे ऐसी कोई अकल्पनीय समस्या जीवन नदिया में बहते बहते झेलनी ही न पड़े। मनुष्य को सदैव यह चाहिए कि वह जीवन में किसी से भी कभी कोई अपेक्षा न ही करे , जिससे समस्त मानवीय संबंध सुरक्षित रहें ! उसके सब संगी साथी जीवन की रणभूमि में डटे रहें !! १५/०३/२०२५.