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Mar 15
मटर छिलते समय
कभी नहीं आते आंसू ,
जबकि प्याज काटते समय
आँखें आंसुओं को बहाती है !
ऐसा क्यों ?
कुदरत भी अजीब है,
यह सब और सच के करीब है !
कोई बनता है मटर ,
कोई रुलाने वाला,
कोई कोई प्याज और टमाटर भी।
यह सब कुदरत का है खेल।
इसे देखता जा, और सीखता जा।
जीवन सभी से कहता है,
वह मतवातर समय के संग बहता है।

मटर छिलते समय
कोई कोई दाना छिपा रह जाता है,
मटर के छिलके
कूड़ेदान में फेंकते समय
मटर का दाना
अचानक दिख जाता है ,
आदमी सोचता है कभी कभी
यह कैसे बच गया ?
बिल्कुल इसी तरह
सच भी
स्वयं को
अनावृत्त करने से
रह जाता है,
वह मटर के दाने की तरह
पकड़ में आने से बच जाता है।
15/03/2025.
Written by
Joginder Singh
38
 
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