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Mar 14
कभी कभी
रंगों से गुरेज़ करने वाले को
अपने ऊपर
रंगों की बौछार
सहन करनी पड़ती है।
यही होली की
मस्ती है।
अपने को एक कैनवास में
बदलना पड़ता है
कि कोई चुपके से आए ,
रंग लगाए ,
अपनी जगह बनाए ,
और रंग लगा
चोरी चोरी
खिसक जाए ,
इस डर से
कि कोई सिसक न जाए।
विरह में सिसकारी ,
मिलन में पिचकारी ,
होली के रंग ही तो हैं।
ये अबीर और गुलाल बनकर
कब अंतर्मन को रंग देते हैं !
पता ही नहीं चलता !!
कभी कभी
होली आती है
और हो ली होकर
निकल जाती है।
पता ही नहीं चलता !
जब तक मन में
मौज है,
उमंग तरंग है ,
खेल ली जाए होली ।
जीवन में रंगों और बेरंगों के
बीच चलती रहे
आँख मिचौली !
ऐसी  कामना कीजिए !
अबीर की सौगात
ख़ुशी ख़ुशी
जिन्दगी की झोली में
डालिए
और हो सके तो
आप अपने भीतर
जीवन के रंगों सहित
अपने भीतर झांकिए
ताकि अंतर्मन से मैल धुल जाए !
चेहरा भी मुस्कुराता हुआ खिल पाए !!
अब की होली सब डर
पीछे छोड़कर
मस्ती कर ली जाए!
क्या पता अनिश्चितता के दौर में
कब आदमी की
हस्ती मिट जाए!
क्या पता पछतावा भी
हाथ न आए !
क्यों न जिन्दगी खुलकर
जी ली जाए !
होली भी हो ली हो जाए !!
१४/०३/२०२५.
Written by
Joginder Singh
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