" हमें जीवन में ज़ोर आजमाइश नहीं बल्कि जिन्दगी की समझाइश चाहिए ।" सभी से कहना चाहता है आदमी का इर्द गिर्द और आसपास , ताकि कोई बेवजह जिन्दगी में न हो कभी जिब्ह , उसके परिजन न हों कभी उदास। पर कोई इस सच को सुनना और मानना नहीं चाहता। सब अपने को सच्चा मानते हैं और अपने पूर्वाग्रहों की खातिर अड़े खड़े हैं, वे स्वयं को जीवन से भी बड़ा मानते हैं। और जीवन उनकी हठधर्मिता को निहायत गैर ज़रूरी मानता है , इसलिए कभी कभी वह नाराज़गी के रुप में अपनी भृकुटि तानता है , पर जल्दी ही चुप कर जाता है। उसे आदमी की इस कमअक्ली पर तरस आता है। पर कौन उसकी व्यथा को समझ पाता है ? क्या जीवन कभी हताश और निराश होता है ? वह स्वत: आगे बढ़ जाता है। जीवन धारा का रुकना मना है। जीवन यात्रा रुकी तो समय तक ख़त्म ! इसे जीवन भली भांति समझता है, अतः वह आगे ही आगे बढ़ता रहता है। समय भी उसके साथ क़दम ताल करता हुआ अपने पथ पर सतत अग्रसर रहता है।