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Mar 13
यदि किसी आदमी को
अचानक पता चले कि
उसकी लुप्त हो गई है संवेदना।
वह जीवन की जीवंतता को
महसूस नहीं कर पा रहा है ,
बस जीवन को ढोए चला जा रहा है ,
तो स्वाभाविक है , उसे झेलनी पड़े वेदना।
एक सच यह भी है कि
आदमी हो जाता है काठ के पुतले सरीखा।
जो चाहकर भी कुछ महसूस नहीं कर पाता ,
भीतर और बाहर सब कुछ विरोधाभास के तले दब जाता।
आदमी किसी हद तक
किंकर्तव्यविमूढ़ है बन जाता।
वह अच्छे बुरे की बाबत नहीं सोच पाता।
१३/०३/२०२५.
Written by
Joginder Singh
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