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Mar 12
आज साल शुरू हुए
लगभग इकहत्तर दिन हुए हैं
और नई कार लिए
छियासठ दिन।
अभी अभी अचानक
कार की हैड लाइट के पास
पड़ गई है नज़र।
वहां दिख गई है
एक खरोंच।
मेरे तन और मन पर
अनचाहे पड़ गई है
एक और नई खरोंच ।
जैसे अचानक देह पर
लग गई हो किरच
और वहां पर
रक्त की बूंदें
लगने लगी हो रिसने।
भीतर कुछ लगा हो सिसकने।
यह कैसा बर्ताव है
कि आदमी निर्जीव वस्तुओं पर
खरोंच लगने पर लगता है सिसकने
और किसी हद तक तड़पने ?
वह अपने जीवन में
जाने अनजाने
कितने ही संवेदनशील मुद्दों पर
असहिष्णु होकर
अपने इर्द-गिर्द रहते
प्राणियों पर कर देता है आघात।
सचमुच ! वह अंधा बना रहता ,
उसे आता नहीं नज़र
कुछ भी अपने आसपास !
यदि अचानक निर्जीव पदार्थ और सजीव देह पर
उसे खरोंच दिख जाए तो वह हो जाता है उदास।
क्या आदमी के बहुत से क्रियाकलाप
होते नहीं एकदम बकवास और बेकार ?
१२/०३/२०२५.
Written by
Joginder Singh
47
 
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