मनुष्य जब तक स्वयं को संयम में रखता है मर्यादा बनी रहती है , जीवन में शुचिता सुगंध बिखेरती रहती है, संबंध सुखदायक बने रहते हैं और जैसे ही मनुष्य मर्यादा की लक्ष्मण रेखा को भूला , वैसे ही हुआ उसका अधोपतन ! जीवन का सद्भभाव बिखर गया ! जीवन में दुःख और अभाव का आगमन हुआ ! आदमी को तुच्छता का बोध हुआ , जिजीविषा ने भी घुटने टेक दिए ! समझो आस के दीप भी बुझ गए ! मर्यादाहीन मनुष्य ने अपने कर्म अनमने होकर करने शुरू किए ! सुख के पुष्प भी धीरे धीरे सूख गए !! मर्यादा में रहना है सुख , समृद्धि और संपन्नता से जुड़े रहना ! मर्यादा भंग करना बन जाता है अक्सर जीवन को बदरंग करना ! अस्तित्व के सम्मुख प्रश्नचिह्न अंकित करना !! मन की शांति हरना !! १२/०३/२०२५.