काश! यह जीवन एक तीर्थ यात्रा समझ कर जीना सीख पाता तो नारकीय जीवन से बच जाता। इधर उधर न भटकता फिरता। चिंता और तनाव से बचा रहता। जीवन के लक्ष्य को भी हासिल कर लेता। अब पछतावा भी न होता। पछतावा विगत की गलतियों का परछावा भर है। आदमी समय रहते संभल जाए , यही इसका हल है। पछताने और इसकी वज़ह को समझ कर समय रहते निदान करने से आदमी का बढ़ जाता आत्मबल है। जो बनता जीने का संबल है। ०५/०३/२०२५.