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Mar 4
बचपन में
मां थपकी दे दे कर
बुला देती थी
निंदिया रानी को ,
देने सुख और आराम।
अब मां रही नहीं,
वे काल के प्रवाह में बह गईं।
अब बुढ़ापे में
निंदिया रानी
अक्सर झपकी बन
रह रह कर देती है सुला,
किसी हद तक
अवसाद देती है मिटा।
अब निंदिया रानी
लगने लगी है मां,
जो देने लगती है
सुख और आराम की छाया!
जिससे हो जाती है ऊर्जित
जीवन की भाग दौड़ में थकी काया !!
अब निंदिया रानी बन गई है मां!
जो सुकून भरी थपकी दे दे कर ,
मां की याद दिलाने लगती है,
सच में मां के बगैर
जिन्दगी आधी अधूरी सी लगती है।
अब निंदिया रानी अक्सर
कुंठा और तनाव से दिलाने निजात
मीठी मीठी झपकी की दे देती है सौगात।
आजकल निंदिया रानी मां सी बन कर
जीवन यात्रा में सुख की प्रतीति कराती है,
यह आदमी को बुढ़ापे में
असमय बीमार होने से बचाया करती है।
०४/०३/२०२५.
Written by
Joginder Singh
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