आदमी कभी कभी अपनी किसी आंतरिक कमी की वज़ह से विदूषक जैसा व्यवहार न चाहकर भी करता है , भले ही वह बाद में पछताता रहे अर्से तक। भय और भयावह अंजाम की दस्तक मन में बनी रहे।
विदूषक भले ही हमें पहले पहल मूर्ख लगे पर असल में वह इतना समझदार और चौकन्ना होता है कि उसे डराया न जा सके , वह हरदम रहता है सतर्क ,अपने समस्त तर्क बल के साथ। विदूषक सदैव तर्क के साथ क़दम रखता है , बेशक उसके तर्क आप को हँसाने और गुदगुदाने वाले लगें।
आओ हम विदूषक की मनःस्थिति को समझें। उसकी भाव भंगिमाओं का भरपूर आनंद लेते हुए बढ़ें। कभी न कभी आदमी एक विदूषक सरीखा लगने लगता है। पर वह सदैव सधे कदमों से जीवन में आगे बढ़ने की कोशिश करता है , यही सब उसके व्यक्तित्व के भीतर कशिश भरता है। उसे निरर्थकता में भी सार्थकता खोजने का हुनर आता है! तभी वह बड़ी तन्मयता से तनाव और कुंठा ग्रस्त व्यक्ति के भीतर हंसी और गुदगुदाहट भर पाता है। ऐसा करके वह आदमी को तनावरहित कर जाता है ! यही नहीं वह खुद को भी उपचारित कर पाता है !! ०३/०३/२०२५.