जो चोर है वही करता शोर है, इस दुनिया में अत्याचार घनघोर है! साहस दिखाने का जब समय आता है, अपना चोर भाई! पीछे हट जाता है। शायद तभी वह शातिर कहलाता है। अचानक भीतर से एक आवाज़ आई सच को उजागर करती हुई, "पर ,कभी कभी सेर को सवा सेर टकरा जाता है। वह चुपके से चकमा दे जाता है, अच्छे भले को बेवकूफ़ बना जाता है।" बेचारा चोर भाई ! मन ही मन में दुखियाता रहता है, वह कहां सुखी रह पाता है ? एक दिन वह चुप ही हो जाता है। वह शोर करना भूल जाता है। जब समय आता है, तब वह वही शोर करने से बाज़ नहीं आता है। इसमें ही उसे लुत्फ़ और मज़ा आता है। वह इसी रंग ढंग से ज़िन्दगी जी कर टाटा बाय बाय कर जाता है। उसके जाने के बाद सन्नाटा भी कुछ उदास हुआ सा पसर जाता है। वह भी चोर के शोर मचाने का इंतज़ार करने लग जाता है कि कोई आए और जीवन को करे साकार। वह भरपूर जिंदगी जीते हुए लौटाए जिन्दगी को चोरी की हुई जिंदगी की लूटी हुई बहार , जीवन में लेकर आए सहज रहकर करना सुधार और निर्मित करना जीवनाधार।