उम्र जैसे जैसे बढ़ी मुझे ऊंचा सुनने लगा है । जब कोई कुछ कहता है, मैं ठीक से सुन पाता नहीं। कोई मुझे इसका कराता है चुपके चुपके से अहसास। मैं पास होकर भी हो जाता हूं दूर। यह सब मुझे खलता है। वैसे बहुत कुछ है जो मुझे अच्छा नहीं लगता। पर खुद को समझाता हूं जीवन कमियों के साथ है आगे मतवातर बढ़ता। इस में नहीं होना चाहिए कोई डर और खदशा। ०१/०३/२०२५.