बेशक कटाक्ष काटता है! यह कभी कभी क्या अक्सर दिल और दिमाग पर खरोचें लगाकर घायल करता है ! पर स्वार्थ रंगी दुनिया में क्या इसके बगैर कोई काम सम्पन्न होता है ? आप कटाक्ष करिए ज़रुर ! मगर एक सीमा में रहकर !! यदि कटाक्ष ज्यादा ही काम कर गया तो कटाक्ष का पैनापन सहने के लिए संयम के साथ स्वयं को रखिए तैयार ! ताकि जीवन यात्रा का कभी छूटे न आधार। कभी क्रोधवश आदमी करने लगे उत्पात। २६/०२/२०२५.