देखते देखते जीवन के रंगमंच पर बदल जाता है परिदृश्य। जीवन जो कभी लगता है एक परिकथा जैसा, इसमें स्वार्थ का दैत्य कब कर लेता है प्रवेश, ख़ास भी आम लगने लग जाता है, देखते देखते मधुमास पतझड़ में तब्दील हो जाता है, जीव में भय भर जाता है। वह मृत्य के इंतज़ार में धीरे धीरे गर्क हो जाता है। अब तो बस स्वप्नावस्था में वसंत आगमन का ख्याल आता है। देखते देखते ही जीवन बीत जाता है, नव आगंतुकों के स्वागतार्थ यह जीवन का अलबेला रंगमंच खाली करना पड़ जाता है, प्रस्थानवेला का समय देखते देखते आन खड़ा होता है जीवन के द्वार पर यह जीवन का दरबार बिखर जाता है। कल कोई नया राजा अपना दरबार लगाएगा, जीवन का परिदृश्य चित्रपट्ट की चलती फिरती तस्वीरों के संग फिर से एक नई कहानी दोहराएगा। इसका आनंद और लुत्फ़ कोई तीसरा उठाएगा। समय ऐसे ही बीतता जाएगा। वह सरपट सरपट दौड़ रहा है। इसके साथ साथ ही वह जीवन से मोह छोड़ने को कह रहा है। २४/०२/२०२५.