श्राद्ध पक्ष में परंपरा है देश में अपने पुरखों को याद करते हुए भोजन जिमाने की ! अपने पुरखों से जुड़ जाने की !
किसी ने कहा था , " गुरु जी! हम ब्राह्मण हैं। ..." मेरे मुखारविंद से बरबस निकल पड़ा था , " यहां पढ़ने वाले ब्रह्मचारी ही असली ब्राह्मण है चाहे ये किसी भी समूह से संबद्ध हों। अतः क्षमा करें।" यह कह मैं अपने काम में हो गया था तल्लीन। फिर अचानक मन में कुछ दया भाव उत्पन्न हुआ। बाहर जाकर देखा तो वह भद्र पुरुष जा चुका था। सेवा का एक मौका हाथ से निकल चुका था। मैं देर तक पछताया था। मैंने याचक को अज्ञानवश द्वार से लौटाया था। एक घटना ने घट कर मुझे कुछ सिखाया था कि आगे से अज्ञान की पोटली मन और चेतना में लिए न फिरो, बल्कि अपने को मेरे तेरे के भावों से ऊपर उठाओ, धरा को समरसता की दृष्टि संचित कर अनुपम बनाओ। हो सके तो लोक जीवन के साथ स्वार्थहीन होकर रिश्ता जोड़ जाओ। २३/०२/२०२५.