आज समाज में असंतोष की आग दावानल बनी हुई सब कुछ भस्मित करती जा रही है , उसके मूल्य दिनोदिन अवमूल्यन की राह बढ़ चले हैं, सब भोग विलास की राह पर चल पड़े हैं। सभी के भीतर डर,आक्रोश, सनसनी उत्पन्न होती जा रही है , हर वर्ग में तनातनी बढ़ती जा रही है। ऐसे समय में समाज क्या करे ? वह अपने नागरिकों में कैसे सार्थक सोच विकसित करे ? वह किन से सुख समृद्धि और संपन्नता की आस करे ताकि उसका मूलभूत ढांचा सकारात्मकता को बरकरार रख सके , इसमें दरारें न आ सकें। इसमें और अधिक बिखराव न हो। कहीं कोई गुप्त तनाव न हो , जिससे विघटन की रफ्तार कम हो सके , समाज में मूल्य चेतना बची रह सके।
आज समाज क्यों न स्वयं को पुनर्संगठित करे ! समाज निज को समयोचित बनाकर अपने विभिन्न वर्गों में असंतोष की ज्वाला को नियंत्रण में रखने के लिए निर्मित कर सके कुछ सार्थक उपाय ! वह समायोजन की और बढ़े ! इसके साथ ही वह अंतर्विरोधों से भी लड़े !! ताकि सब साम्य भाव को अनुभूत कर सकें !! २३/०२/२०२५.