यदि आदमी कभी अपनी जेहादी मानसिकता को भूल जाए , तो कितना अच्छा हो उसका रोम रोम भीतर तक कमल सा खिल जाए ! वह बगैर किसी कुंठा और तनाव के जीवन पथ पर आगे बढ़ पाए ! कितना अच्छा हो आदमी बस खुद को समझ जाए , तो उसका जीवन स्वयंमेव सुधर जाए। वह निर्मलता का मूल जान जाए । वह मन की मलिनता को दूर कर पाए। वह बाहर और भीतर के प्रदूषण से लड़ पाए। वह जीवन में कुंदन बन जाए। २१/०२/२०२४.